पालमपुर: हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित डिजीसीएन कॉलेज ऑफ वेट्रिनरी एंड एनिमल साइंसेज में अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) के तहत बकरी सुधार की वार्षिक समीक्षा बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक में 35 वैज्ञानिकों और उद्यमियों ने भाग लिया। इसका उद्देश्य बकरी पालन में सुधार और ग्रामीण कृषकों को बढ़ावा देना, श्रमिकों की समीक्षा और भविष्य की प्रगति पर चर्चा करना है।
उन्नत बकरी नस्लों के विकास पर फोकस
आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन गोट्स (सीआईआरजी) के निदेशक डॉ. एम.के. चैटली ने प्रोजेक्ट के महत्व को देखते हुए कहा कि इसका उद्देश्य डॉक्टरों की आनुवंशिक क्षमता प्राप्त करना है। बैठक में उन्नत प्रौद्योगिकी कंपनियों, जैसे कृत्रिम गर्भाधान (एआई) को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। जर्म एयरलाइंस और वाणिज्यिक झुंडों की स्थापना के लिए बेहतर नस्लों की भी आवश्यकता है।
आईसीएआर के उपमहानिदेशक डॉ. राघवेंद्र भट्ट ने बताया कि किस देश में 15 करोड़ बकरियां हैं और आने वाले पशु धन में बकरी की आबादी और वृद्धि की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि किरिस बक की जलवायु सहनशीलता के कारण पशुधन में काफी वृद्धि हो रही है और बकरी के औषधि के औषधीय मिश्रण पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है। महानगरों में कम वसा वाले बकरी के मांस की हल्दी मांग और बकरी के दूध के स्वास्थ्य लाभ के बारे में भी चर्चा की गई।
ग्रामीण और आय बढ़ाने का प्रयास
पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. पालमपुर में आयोजित बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं। नवीन कुमार ने कहा कि बकरी पालन राज्य के कृषि-जलवायु क्षेत्र में आय का महत्वपूर्ण स्रोत है। उन्हें बकरी और भेड़ पालन के एकीकरण और प्राकृतिक खेती के साथ इनके संयोजन की आवश्यकता बताई गई है। दामिनी जैसे सीज़न-आधारित मोबाइल ऐप्स का उपयोग जोखिम प्रबंधन पर भी जोर दिया गया।
डॉ. भट ने कहा कि राष्ट्रीय पशु आनुवंशिकी स्रोत ब्यूरो (एनबीएजीआर) के माध्यम से बकरी नस्लों के शेयर बाजार (आईपी) प्रबंधन को सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने जमनापारी नस्ल का उल्लेख करते हुए बताया कि यह नस्ल प्रतिदिन 4 लीटर दूध देने में सक्षम है और आहार से इसका उत्पादन और वजन बेहतर हो सकता है।
बैठक के दौरान सभी टीमों ने बकरी उत्पादक किसानों (एफपीओ) को बढ़ावा देने और जलवायु-अनुकूल नस्लों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।